आज अचानक कुछ इकरार करने का दिल करने लगा है
अपने दिल के बोग्ज़ का इज़हार करने का दिल करने लगा है
फिज़ा में मानों ग़ज़ल की समां बंध गयी हो
ऐसा मुझे क्यों अचानक लगने लगा है .
बिजली की कड़क में भी नज़्म
के मिठास का एहसास होने लगा है
फूल चाहे कोई भी हो
गुलाब ही लगने लगा है
पता नहीं क्यों
सब फिर से अपना लगने लगा है .
रात में जो ख्वाब मुझे अक्सर
परेशां करते थे
अब दिन में भी उनसे
मुझे उन्स होने लगा है
मैं नहीं जानता ये
बदलाव क्यों होने लगा है
सिर्फ वह दिन याद है जब मैं तुमसे मिला था
उसी दिन से मानो सब कुछ बदलने लगा है .
अपने दिल के बोग्ज़ का इज़हार करने का दिल करने लगा है
फिज़ा में मानों ग़ज़ल की समां बंध गयी हो
ऐसा मुझे क्यों अचानक लगने लगा है .
बिजली की कड़क में भी नज़्म
के मिठास का एहसास होने लगा है
फूल चाहे कोई भी हो
गुलाब ही लगने लगा है
अब दुश्मनों से भी दिल
लगाने का दिल करने लगा है पता नहीं क्यों
सब फिर से अपना लगने लगा है .
रात में जो ख्वाब मुझे अक्सर
परेशां करते थे
अब दिन में भी उनसे
मुझे उन्स होने लगा है
मैं नहीं जानता ये
बदलाव क्यों होने लगा है
सिर्फ वह दिन याद है जब मैं तुमसे मिला था
उसी दिन से मानो सब कुछ बदलने लगा है .
मंसूर
No comments:
Post a Comment