जब मैं बच्चा था
लोगों की डांट भी खानी पड़ती थी
अम्मीं के थप्पड़ भी बर्दाश्त करने पड़ते थे .
तब मैं सोचा करता था
बड़ा होऊंगा जल्दी
तब मुझे न खानी होगी
किसी की डांट न ही अम्मीं से डर होगा .
फिर मैं बड़ा हुआ
कोई डांटता तो नहीं अब
अम्मीं भी अब
संभाल कर बोलती हैं
लेकिन सुबह से शाम बहुत सारी
फ़िक्र होती है
कभी लोगों के ताने परेशान करते हैं
कभी रोटी की चिंता होती है .कभी दोस्तों की मुस्कराहट में
मजाक उडाए जाने का एहसास होता है
सपने को पूरा न होते देख
बड़ी मायूसी सी लगती है .
अब रिश्तों से पहचान हो गयी है
रिश्तों को निभाना बड़ा मुश्किल लगता है
पता नहीं अब क्या करूं
काश मेरा बचपन लौट आता .
अम्मीं के थप्पड़ फिर से खाता
लोगों की डांट सुनकर मज़ा लेता
रिश्तों में काश बंधा न होता
सपनों की कोई परवाह न होती .
क्योंकि बचपन में रहना
खुद एक सपना है
काश खोदाया मेरी सुन लेता
और मैं फिर से बचपन में लौट गया होता
फिर न तमन्ना करता बड़े होने की
सिर्फ दुआ करता उस वक़्त के ठहर जाने की
जब मैं बच्चा था
शरारत बहुत करता था .
मंसूर