तुम माँ हो तुम बहन हो
तुम संगिनी हो तुम जीवनदायिनी हो
आधा संसार हो तुम
तुम्हारे बग़ैर यह दुनिया बेमाना है
फिर भी सहती हो माँ होकर
बच्चों की पहरेदारी
बीवी होकर शौहर की
चारदीवारी
परदे में रहना पड़ता है तुम्हें
सब कुछ सहना पड़ता है तुम्हें
कभी बिकती हो तुम
बाज़ारों में
किसी की जीनत हो तुम
तो कुछ लोगों के लिए सिर्फ एक जिस्म
एक ही रूप में न जाने
कितने किरदार निभाती हो तुम
तुम्हारे कोख से निकला हुआ तुम्हारा ही अंश
कितना ज़ुल्म करता है तुम पर
कैसे सहती हो तुम यह सब
कभी बीवी कभी बहन कभी माँ बनकर
ऐसा कैसे कर लेती हो तुम
सहती हो इतनी सारी तकलीफें
तुम को तो न छोड़ा भगवान ने भी
पूरी कायनात का टीस दे दिया तुम्हारे हिस्से में
लोगों को बेचारी क्यों लगती हो तुम
कोख में ही पता चलने पर
तुम्हें वंचित कर दिया जाता है
दुनिया में आने से
तुम कुछ बोलती क्यों नहीं
क्यों मना नहीं कर देती हो
कोख में साँपों को पनपने से
क्यों नहीं मना कर देती हो वासना का शिकार बनने से
एक ही कारण मुझे नज़र आता
क्योंकि तुम औरत नहीं भगवान हो
जो सिर्फ देता है ज़रूरत में
तुम बेचारी नहीं बलवान हो महान हो .
मैं तुम्हें सलाम करता हूँ
हजारों बार नहीं करोड़ों बार
क्योंकि मेरे दुनिया में रहने की
तुम ज़मानत्दार हो.
मंसूर
तुम संगिनी हो तुम जीवनदायिनी हो
आधा संसार हो तुम
तुम्हारे बग़ैर यह दुनिया बेमाना है
फिर भी सहती हो माँ होकर
बच्चों की पहरेदारी
बीवी होकर शौहर की
चारदीवारी
परदे में रहना पड़ता है तुम्हें
सब कुछ सहना पड़ता है तुम्हें
कभी बिकती हो तुम
बाज़ारों में
किसी की जीनत हो तुम
तो कुछ लोगों के लिए सिर्फ एक जिस्म
एक ही रूप में न जाने
कितने किरदार निभाती हो तुम
तुम्हारे कोख से निकला हुआ तुम्हारा ही अंश
कितना ज़ुल्म करता है तुम पर
कैसे सहती हो तुम यह सब
कभी बीवी कभी बहन कभी माँ बनकर
ऐसा कैसे कर लेती हो तुम
सहती हो इतनी सारी तकलीफें
तुम को तो न छोड़ा भगवान ने भी
पूरी कायनात का टीस दे दिया तुम्हारे हिस्से में
लोगों को बेचारी क्यों लगती हो तुम
कोख में ही पता चलने पर
तुम्हें वंचित कर दिया जाता है
दुनिया में आने से
तुम कुछ बोलती क्यों नहीं
क्यों मना नहीं कर देती हो
कोख में साँपों को पनपने से
क्यों नहीं मना कर देती हो वासना का शिकार बनने से
एक ही कारण मुझे नज़र आता
क्योंकि तुम औरत नहीं भगवान हो
जो सिर्फ देता है ज़रूरत में
तुम बेचारी नहीं बलवान हो महान हो .
मैं तुम्हें सलाम करता हूँ
हजारों बार नहीं करोड़ों बार
क्योंकि मेरे दुनिया में रहने की
तुम ज़मानत्दार हो.
मंसूर